Wednesday, September 4, 2019

पापा किसके साथ सोयेंगे ?

कभी कभी बच्चे अपने भोलेपन और मासूमियत में कुछ ऐसी बात कर जाते हैं कि मन हँसे बिना नहीं रह पाता। अधिकांशतः अभिभावकों के समक्ष बड़े होते बच्चो को अकेले सुलाने की विकराल समस्या होती हैं। इस समस्या में जहाँ एक तरफ स्वयं का वात्सल्य आड़े आता हैं वहीं दूसरी और बच्चों के अंकुरित होते मानस पटल में उभरने वाले भय नए नए कारक भी होते हैं। और फ़िर हमारे ज़माने में तो सिर्फ़ झोली वाला बाबा ही होता था किंतु आज कल सूचना-युग में बच्चे भी नए -नए विकट कारको से भय ग्रस्त रहते हैं। इन सब बातों के बीच जिस बात को हम सभी विस्मृत कर देते हैं वो हैं कि इस समस्या से झूझते हुए हमारी भावी संतान अपने बड़ों के प्रति क्या सोचती हैं....
अभी हाल में ही, इसी समस्या से ग्रस्त मेरे साथ कार्यरत सहयोगी अपने चार वर्षीया पुत्री के विषय में बता रही थी कि गत सप्ताह वे उसे अकेले सोने के लिए प्रेरित कर रही थीं। यह बच्ची चार वर्षों से उनके साथ ही सोती थी किंतु अब कुछ ही माह में उनका परिवार "हम दो हमारी एक"की परिपाटी छोड़कर "हम दो हमारे दो" पर श्रद्धा व्यक्त करने वाला है। अतः वे अपनी बेटी को अकेले सोने के लिए प्रेरित कर रहीं थी। उसको समझाते हुए उन्होंने कहा कि तुम तो अब बड़ी हो गई हो, तुम्हे तो डर भी नहीं लगता हैं । अब आपको अकेले सोना चाहिए, मम्मी के साथ नहीं" तो बच्ची ने बड़ी मासूमियत से माँ से पूछा कि "आप कहाँ सो रहे हो ?" तो उन्होंने उसे समझाया कि पापा के साथ। इस पर उसने तपाक कहा कि जब पापा इतने बड़े होकर भी डरकर आपके पास सोते हैं तो फ़िर मैं तो अभी छोटी हूँ।
इसी तरह की एक ओर घटना हमारे साथ भी कल हो गई। हमारे एक अन्य मित्र महोदय सपरिवार हमारे घर आए हुए थे। उनका एक पांच वर्षीय बेटा भी साथ आया हुआ था। रात को घर के बाहर जाते समय जब हमारे मित्र और उनके सुपुत्र घर के बाहर निकल गए तब हमारे मित्र के पत्नी कुछ क्षणों के लिए अन्दर मेरी पत्नी के साथ रूक गई। (अवश्य ही किसी धरावाहिक की आने वाली कड़ियों के विषय में विमर्श हो रहा होगा....अच्छा है कि ऐसी चीज़ों पर सट्टा नहीं लगता !!)। बाल स्वभाव के अनुरूप हमारा मित्र-पुत्र अत्यन्त व्यग्र हो गया। अपनी माँ को न आने के कारण बैचैनी से इधर उधर तांक-झांक कर रहा था। मैंने कहा कि "क्या ढूंढ रहे हो ? मम्मी आज हमारे घर में ही रुक रहीं हैं..." हमारे इस कथन पर उसने ऐसा विस्मयकारी दृष्टि से मुझे देखा कि मैं मंगल ग्रह पर जीवन की घटना बता रहा हूँ। शायद उसे अपने पीछे खड़े पिता की आँखों में सिर्फ़ इस संभावना से उपजी खुशी की चमक का अंदेशा नहीं था पर उसने थोडी पहले अपने सारे तर्क-वितरकों का तौल मोल किया फ़िर कहा कि अगर मम्मी यहाँ रुक जाएँगी तो खाना कौन बनेगा... हमने भी साधा हुआ सा जबाब दिया कि "पापा बनायेंगे और कौन बनेगा...." इस पर वो थोडी देर तक सोचता रहा फिर अपने सारे चातुर्य को समेट कर बोला - "अंकल अगर मम्मी आज यहाँ रुक जाएँगी तो पापा किसके साथ सोयेंगे....."

Monday, May 31, 2010

नई कार

मुनरो - कार उत्पादन के ब्रह्माण्ड के केंद्र बिंदु डेटरोइट के दक्षिण में छोटा सा शहर....इस शहर की जिन्दगी स्थानीय फोर्ड प्लांट से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाती है...वर्षों से यह प्लांट पीढ़ियों को पालता आ रहा था. इस शहर में फोर्ड के प्रति लोगों की आस्था कुछ इस तरह रची बसी थी जैसेकि चकोर का चंदा प्रेम...जब कि विदेशी कारों का बाज़ार सारे अमेरिका में बढ़ रहा था तब भी इस शहर में फोर्ड के आलावा कुछ नहीं बिकता था. यहाँ तक की डेटरोइट शहर में ही बनाने वाली जी.यम. (जनरल मोटर्स) और क्राइस्लर की भी कोई पूछ नहीं थी.....

मुनरो के इसी प्लांट में मेरा मित्र जॉन काम करता है. अभी हाल में ही जॉन की पत्नी "सिंथिया" भी इसी प्लांट में काम करती थी किन्तु लगातार हो रहे घाटे से उबरने के लिए जब फोर्ड ने इस प्लांट से  दो शिफ्टों को बंद किया तो सिंथिया को घर बैठना पड़ा... सिंथिया के घर बैठने से अगर कोई खुश हुआ था - तो वो थी सिंथिया और जॉन की तीन वर्षीय पुत्री "हेलन". छोटी सी हेलन की आँखों की चमक ही माँ के साथ बिताये जाने वाले अधिक समय की खुशियाँ बता देती थी....

हेलन को क्या पता था कि माँ के घर पर रहने से इस मजदूर परिवार की आय काम और खर्चे बढ़ने लगे थे...अभी तक जहाँ एक ही प्लांट पर जाने से एक कार से काम चल जाता था, वहीं अब नौकरी तलाशती सिंथिया के कारण दो  कारों की ज़रुरत आ पड़ी है... उसे तो बस स्कूल के बाद माँ के साथ बिताने वाले समय की चाह रहती थी...उसका बस चलता तो माँ को एक भी नौकरी नहीं ढूढने देती....

नई कार को लेकर जॉन और सिंथिया में कुछ तना-तनी भी चल रही थी. सिंथिया आपनी माँ के समझाने पर नई कार टयोटा खरीदना चाहती थी किन्तु जॉन को यह गवारा नहीं था. कई दिनों के शीत युद्ध के पश्चात पत्नीनिष्ठ पति की तरह जॉन ने भी टोयोटा के लिए हाँ कर दी. हेलन की तो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था क्योंकि जॉन ने कहा की नई कार हेलेन की होगी. जब जॉन और सिंथिया नई कार खरीद रहे थे तो डीलर के वहाँ बिचारी हेलन ने सारा बोरियत भरा समय यह सोच कर ही बिताया की नई कार उसे मिलने वाली है....जॉन ने भी अपना वादा निभाते हुए नई नंबर-प्लेट हेलन के नाम की ही ली.

नई कार खरीदने की बधाई देने के लिए जब मैंने जॉन को फ़ोन किया तो जॉन ने मुझे बता की कैसे नई कार में फोर्ड के मुकाबले कुछ भी नया नहीं है किन्तु विदेशी होने के नाते उसे कितना अधिक पैसा देना पड़ा. इस समय जब उसकी माली-हालात अच्छे नहीं हैं ऐसे में व्यर्थ का गैर-ज़रूरी लोन उसे कितना दुःख पहुंचा रहा है. साथ ही प्लांट में सभी उससे नाराज़ हैं.. उसके यूनियन के दोस्त सब उसके सामने और पीठ पीछे इस नई कार के कारण कैसे ताने दे रहे हैं..कुल मिलाकर उसे ऊँची दुकान और फीका पकवान वाला अनुभव रहा. उसकी राम-कहानी सुनकर मुझे कुछ अजीब सा लगा. मैंने उसका मूड सुधारने के लिए कहा कि घर आ जाओ इस वीक-एंड पर तुम्हे कुछ लज्जत  भरे देसी पकवान खिलते हैं....जॉन और सिंथिया दोनों को कढ़ी, पकोड़े, समोसे और परांठा बहुत पसंद हैं..मुझे विश्वास था कि वो इस दावत को मना नहीं  करेगा... (हाँ उन दोनों को ५ साल पहले यह जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ था कि हम बिना किसी मांसाहार के भोजन कैसे खाते हैं...वो अलग बात हैं कि अब उन्हें हमारे खाने की लत हो गई है)

आज दावत पर जब वो हमारे घर आये तो प्रारंभिक पकोड़ों के बाद अपनी अपनी वार्ता में लीन हो गए...मैं और जॉन जहाँ इकोनोमी से लेकर मौसमों के प्रभाव आदि की वार्ता में व्यस्त थे वहीं औरतों ने  व्यंजन से लेकर शहर में आने वाली हर सेल का विवरण तैयार करना शुरू कर दिया. बाहर अच्छी धूप थी सो बच्चों ने घर के बाहर डेरा जमाया. बातों ही बातों में फिर नई कार की बात निकल पड़ी... जॉन ने बताया कि वो नई कार से ही आया हैं. अब हमारे दोस्त के दांपत्य जीवन को चुनौती देने वाली कार हमारे घर की दहलीज पर खडी हो और हम उसके दर्शन का सौभाग्य छोड़ दे ऐसा कैसे हो सकता था.  हमने भी मानवीय उत्सुकता को औपचरिकता का आवरण ओढा कर जॉन से  कार-दर्शन की इच्छा व्यक्त की.

हम सभी लोग (जॉन और मैं दोनों ही सपत्नी) घर के बाहर आये.  घर के बाहर जॉन की नई कार पर हमारी नज़र पढ़ते ही हम आवाक रह गए. हेलन हाथ में एक कंकड़ लेकर उसके नई कार पर कुछ घिस-घिस कर लिख रहीं थी. इंतनी महंगी कार, वो भी मुफलिसी के दौर में जिसे बेचारे जॉन ने सारे पास-पड़ोस के ताने झेलते हुए खरीदा था उसे की यह दशा - जॉन ने आव देखा न ताव बिचारी हेलन को दो तमाचे जड़ दिए. हमने तो यहाँ किसी को भी अपने बच्चों पर यूँ हाथ उठाते नहीं देखा था सो हम भी सन्न रह गए.  पुलिस और डोमेस्टिक वोइलेंस के डर के चलते देसी बाप भी अपने बच्चों को छिपते छिपाते ही कभी कभार मारते होंगे और यहाँ हमारे दरवाजे पर यह क्रूरता...सिंथिया और सपना (हमारी पत्नी) ने हेलन को संभाला और हमने जॉन को...जॉन का गुस्सा अभी भी बरक़रार था. मैंने जॉन को समझाया कि क्या करते हो? बच्ची है हो जाता है... जॉन ने कार की तरफ इशारा करते हुए कहा देखो यह क्या किया हैं इस दुष्ट (रास्कल)  ने... हम सभी ने नुक्सान का जायजा लेने को कार पर अपनी नज़र दौडाई...कार पर बड़े बड़े शब्दों में हेलन ने लिखा था "आई लव यू डैडी" (I  Love  you  Daddy )....जॉन का गुस्सा आँखों से अश्रुधार बनकर फूट पड़ा और उसने हेलन की तरफ देखा और रोती सहमी सी हेलन ने बस इतना कहा "डैडी आपने कहा था यह कार मेरी हैं" (Daddy , you  said that  its  my  car)

इस घटना के तुरंत बाद ही जॉन अपने घर निकल पड़ा और मैं व्याकुल ह्रदय लिए यहीं सोचता रहा कि गलती किसकी है....
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